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आभि॑र्विधेमा॒ग्नये॒ ज्येष्ठा॑भिर्व्यश्व॒वत् । मंहि॑ष्ठाभिर्म॒तिभि॑: शु॒क्रशो॑चिषे ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ābhir vidhemāgnaye jyeṣṭhābhir vyaśvavat | maṁhiṣṭhābhir matibhiḥ śukraśociṣe ||

पद पाठ

आभिः॑ । वि॒धे॒म॒ । अ॒ग्नये॑ । ज्येष्ठा॑भिः । व्य॒श्व॒ऽवत् । मंहि॑ष्ठाभिः । म॒तिऽभिः॑ । शु॒क्रऽशो॑चिषे ॥ ८.२३.२३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:23» मन्त्र:23 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:13» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:23


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शिव शंकर शर्मा

होमसमय परमात्मध्यान दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हम उपासकगण (व्यश्ववत्) जितेन्द्रिय ऋषिवत् (शुक्रशोचिषे) शुद्धतेजस्क (अग्नये) परमात्मा की (आभिः+ज्येष्ठाभिः) इन श्रेष्ठ (मंहिष्ठाभिः) पूज्यतम (मतिभिः) स्तुतियों से (विधेम) सेवा करें ॥२३॥
भावार्थभाषाः - ध्यान के समय इन्द्रियसहित मन को रोक और अन्तःकरण में ही उत्तमोत्तम स्तोत्र पढ़ते हुए उपासक ईश्वर का ध्यान करें ॥२३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (शुक्रशोचिषे) दीप्तज्योतिवाले (अग्नये) उस शूरपति को (आभिः, ज्येष्ठाभिः) इन अतिदीर्घ (मंहिष्ठाभिः) अतिशय पूजनीय (मतिभिः) स्तुतियों से (व्यश्ववत्) व्यापक शक्तिवाले के समान (विधेम) परिचरण करते हैं ॥२३॥
भावार्थभाषाः - उस दिव्य ज्योतिवाले शूरवीर की स्तुतिएँ व्यापक शक्तिसम्पन्न के समान सत्करणीय होती हैं अर्थात् जिस प्रकार विद्युदादि पदार्थ व्यापक शक्तिवाले हैं, इसी प्रकार शूरवीर भी अपनी विस्तृत शक्तियों से बहुव्यापक होता है, जिसका परिचरण करना योग्य है ॥२३॥
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शिव शंकर शर्मा

होमसमये परमात्मध्यानं दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - वयमुपासकाः। व्यश्ववत्=जितेन्द्रियर्षिवत्। शुक्रशोचिषे= शुद्धतेजस्काय। अग्नये। ज्येष्ठाभिः=श्रेष्ठाभिः। मंहिष्ठाभिः= पूज्यतमाभिः। आभिर्मतिभिः=स्तुतिभिः। विधेम=परिचरेम ॥२३॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (शुक्रशोचिषे, अग्नये) दीप्ततेजसे शूराय (आभिः, ज्येष्ठाभिः) आभिर्दीर्घतमाभिः (मंहिष्ठाभिः) पूज्यतमाभिः (मतिभिः) स्तुतिभिः (व्यश्ववत्) व्यश्वऋषिरिव (विधेम) परिचरेम ॥२३॥